2015-2016 की है जब नैपकिन की राशि छात्राओं को नगद दी जाती थी। उस समय मैं वर्ग अष्टम का वर्ग शिक्षक था और मैं राशि छात्राओं को दे रहा था, तभी एक छात्रा ने मुझसे घर जाने का आग्रह किया तो मैंने देखा उसका कपड़ा पूरा पीछे से रक्त से भीगा हुआ है, पर मैं बिल्कुल भी अचंभित नहीं हुआ और उसे अपना तौलिया दिया तथा घर जाने को कहा।लेकिन यह घटना आज भी मुझे अपने पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।2020 से मैं अब तक कई विद्यालयों, महाविद्यालयों, खासकर ग्रामीण परिवेश से जुड़ी युवतियों और छात्राओं