'शिक्षा बिना बोझ के' सरीखे तमाम रिपोर्टों में विद्यालय से बच्चों के ड्रॉप-आऊट का एक महत्वपूर्ण कारण उनके भारी बस्ते के बोझ को माना गया है जो उनपर केवल शारीरिक ही नही बल्कि गहरा मानोवैज्ञानिक प्रभाव भी छोड़ता है। इस समस्या की गंभीरता को हम बहुत समय से नजरअंदाज करते आ रहे हैं। लेकिन हाल ही में, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा विद्यालयी पाठ्यचर्या के विषयवस्तु को कम करने के निर्देश ने इस विषय को फिर से जागृत कर दिया है। बच्चों के कंधों पर से बस्ते का बोझ कुछ कम हो सके, इसके लिए देश-विदेश में कई विमर्श और शैक्षिक प्रयोग भी चल रहे हैं। इसके कुछ उदाहरण नीचे लिंक पर क्लिक कर के देखे जा सकते हैं।
(हर शनिवार, एक रोचक नवाचार)
बिहार जैसे राज्य के लिए यह विषय और भी प्रासंगिक है क्योंकि यहाँ पर सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की आबादी ढाई करोड़ से भी ज्यादा है। सुझाव यह है कि क्या बिहार के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने आ रहे बच्चों के लिए प्रत्येक शनिवार को 'बिना बस्ते वाला दिन' (बैगलेस डे) बनाया जा सकता है। इस दिन बच्चों को घर से विद्यालय में किताब-काँपी लाने से पूरी तरह छुट्टी दे दी जाए। इसका तात्पर्य यह नही है कि इसदिन कोई पढ़ाई नही होगी बल्कि इस दिन सीखने-सिखाने का अंदाज़ रोचक एवं नवाचारी गतिविधियों से भरपूर होगा जिससे बच्चें स्वतः ही विद्यालय के प्रति आकर्षित होंगे। यदि प्रत्येक शनिवार को ऐसा किया जाय तो आगामी सप्ताह की पढ़ाई का स्वागत बच्चे अति उत्साहपूर्ण भाव से करेंगे और यह शिक्षण की नीरसता को भी बहुत हद तक दूर करेगा।
इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर 'टीचर्स ऑफ बिहार' एक संक्षिप्त सर्वे कराया गया था|