हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी अपेक्षित मानदंडों के आधार पर चयनकर्ताओं द्वारा उत्कृष्ट शिक्षक रूपी हीरे निकाल ही लिए गए। ऐसे चयन कार्यों की पृष्ठभूमि में कई स्तरों पर खोजबीन की व्यापक एवं मानक प्रक्रिया का पालन किया जाता है। इसलिए,इस अथक परिश्रम के फलाफल का भविष्योन्मुखी होना बेहद आवश्यक है ताकि इसकी सार्थकता सिद्ध हो सके। ऐसे अनेकों शिक्षक हैं जो बहुत ज्यादा कुछ कर भी चुके हैं,उनके योगदान को लोग देख भी रहे हैं और सराह भी रहे हैं, चाहे उन्हें कोई पुरस्कार मिले या न मिले। यह भी सत्य है कि पुरस्कार पाने की नवीन प्रक्रियाओं से अधिकतर शिक्षक अनभिज्ञ हैं और कई तो जानते हुए भी दस्तावेजीकरण में पड़ना ही नहीं चाहते। कुछ शिक्षकों का यह भी मानना हो सकता है कि पुरस्कार तो दिया जाता है...मांगा नहीं जाता और मौजूदा व्यवस्था में खुद को पुरस्कृत करने के लिए आवेदन दे कर आफ्ना दावा प्रस्तुत करना पड़ता है।
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों की चयन की एक प्रक्रिया है,ये बात दिखती है और समझ में भी आती है। योग्य को सम्मान मिले यह सही है। पर राष्ट्रीय स्तर पर इसमें सभी योग्य शिक्षकों को शामिल करना मुश्किल है। क्योंकि इनकी भी संख्या कम नही है। पर राज्य स्तर,जिला स्तर, संकुल स्तर पर तो कर ही सकते हैं। इसमें हरेक जिले से हम क्या एक शिक्षक भी नही चुन सकते हैं? यदि पुरस्कार किसी के कार्य को प्रतिष्ठा देना है जो प्रेरणा देने का काम करता है तो हरेक जिले का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं? प्रमंडल स्तर,जिला स्तर,प्रखंड स्तर पर से क्यों नही?
अनेकों शिक्षक अपनी शिक्षण कला का मूक प्रदर्शन कर भी रहे है,उनका काम विद्यालय स्तर से लेकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर तक बोलता है। आज बिहार में शिक्षको के सराहनीय कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए कई मंच आगे आ रहे हैं जहां बिहार के ऐसे अनगिनत शिक्षा सेनानियों की शौर्य गाथाएं आंकित है, बिना किसी भेदभाव और लाग-लपेट के। क्रांति का आगाज़ चीख-चीख कर अपने कर्मशौर्य का भव्य प्रदर्शन कर रहा है। वो भी प्रमाणिकता के साथ। ऐसा लगता है कि एक सेवा भाव की प्रतियोगिता सी चल पड़ी है। शिक्षा में गुणात्मक बदलाव की मशाल जलाए अनगिनत शिक्षक अथक लगे हुए हैं। कुछ ऐसे जौहरी मंच भी हैं जो इनके कार्यो का अभिलेखीकरण करने का अहम काम कर रहे हैं।
इस मुखपत्र का केंद्रीय विचार यह है कि राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे गए शिक्षकों को खूब पहचान मिलनी चाहिए तथा उनके द्वारा किए गए बेहतर कार्यों का सार्वजनीक प्रदर्शन और अभिलेखीकरण हो ताकि शिक्षा में उन्नयन हेतु वे अनवरत प्रेरक बन सकें। इसलिए यह गौर किया जाना जरूरी है कि एक शिक्षक के तौर पर यदि हमने किसी वर्ष किसी भी प्रकार का पुरस्कार पाया है तो क्या हमारा दस्तावेजीकरण किया गया है? सोंचिये,यदि हमारे कार्य का वीडियो भी वहां होता या कार्यो की तस्वीर होती तो भविष्य में कई शिक्षको को प्रेरणा देने का काम करती। जाहिर है उनके जैसे बहुतों शिक्षक होंगे पर वे अलग कैसे साबित हुए? उनकी अतिरिक्त विशेषताओं से उन कार्यो को सभी शिक्षक जानेंगे और वे भी उनकी तरह बनने का प्रयास करेंगे।हो सकता है कुछ बेहतर भी हो जाएं।इसलिए उनके कार्यो और कार्यस्थल का भी सर्वजनीकरण किया जाए ताकि और शिक्षको तक उनके कार्यो की पहुंच एक आदर्श या मानक के रूप में स्थापित हो।यह समय की मांग है।
हम क्या-क्या कर सकते हैं-
1. अभी तक सभी राष्ट्रीय, राजकीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों के महत्वपूर्ण कार्यों का ऑनलाइन दस्तावेजीकरण का कार्य सार्वजनिक किए जाए ताकि बाकी शिक्षक उनके कार्यों का अनुकरण कर सके।
2. प्रखंड, जिला, प्रमंडल स्तर से योग्य और समर्पित शिक्षक चुने जाएं और उनके कार्यों का भी जिला स्तर पर दस्तावेजीकरण हो तो कोई भी शिक्षक उक्त पोर्टल पर जाकर उनकी विशेषताओं से परिचित हो सकते है, अनुकरण कर सकते हैं या उससे बेहतर करने का प्रयास कर सकते हैं।
3.संकुल स्तर, प्रखण्ड स्तर पर बेस्ट टीचर ऑफ द मंथ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जायें।
4. वैसे विद्यालय में अन्य विद्यालय के शिक्षको और प्रधान का भ्रमण हो।चर्चा और परस्पर संवाद सृजन की कई खिड़कियां खोल सकता है।
5. बिहार का अपना एक वेबसाइट/पोर्टल हो जिस पर पुरस्कृत शिक्षको से संबंधित विद्यालय की तस्वीर और काम का वीडियो हो।
6. राष्ट्रीय और राजकीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों को राज्य स्तर एवं जिला स्तर के महत्वपूर्ण कार्यशालाओं और प्रशिक्षण में अधिकाधिक मौके दिये जाएँ।
7. राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार में आवेदन करने वाले इच्छुक शिक्षकों का जिलावार प्रशिक्षण एवं काउंसिलिंग की व्यवस्था की जाए ताकि बिहार को आवंटित अधिकाधिक सीट प्राप्त हो सके।
8. शिक्षा पदाधिकारियों को अपने क्षेत्र के अधिक से अधिक अच्छे शिक्षकों कि पहचान कर पुरस्कार हेतु उन्हे प्ररित करने का कार्य किया जाना चाहिए।
बात निकली है तो दूर तलक पहुंचे या न पहुंचें पर सही जगह पर सही लोगों तक पहुंच जाए,यही काफी होगा और यही शिक्षक चाहता है।
06 2021